15 views
मज़दूर - दर्पण स्वाभिमान का
किस्मत लिखी है उस रब ने, तो
रुसवा किससे हो जाऊँ।
दो हाथ सलामत है मेरे तो
भूखा कैसे सो जाऊँ॥
घर है मेरा ये आसमाँ
बिछौने धरा न बिछाये है।
कर्म-भागी मैं कर्म करूंगा
हाथ न कभी फैलाए हैं॥
देखें न कभी छाले हाथों के
बस सपनें अपनों के देखें है।
जिम्मेदारियाँ है घर मेरे की
मैंने मासूम चेहरे उनके देखें है॥
देखा न तपती धूप को
काम में अपने मैं चूर हूं।
भूखा कैसे रहने दूँगा
जब तक मैं मजदूर हूं॥
चेतन घणावत स.मा,
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान
© Mchet143
रुसवा किससे हो जाऊँ।
दो हाथ सलामत है मेरे तो
भूखा कैसे सो जाऊँ॥
घर है मेरा ये आसमाँ
बिछौने धरा न बिछाये है।
कर्म-भागी मैं कर्म करूंगा
हाथ न कभी फैलाए हैं॥
देखें न कभी छाले हाथों के
बस सपनें अपनों के देखें है।
जिम्मेदारियाँ है घर मेरे की
मैंने मासूम चेहरे उनके देखें है॥
देखा न तपती धूप को
काम में अपने मैं चूर हूं।
भूखा कैसे रहने दूँगा
जब तक मैं मजदूर हूं॥
चेतन घणावत स.मा,
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान
© Mchet143
Related Stories
23 Likes
2
Comments
23 Likes
2
Comments