...

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मोहब्बत का इल्जाम!
सच मानो हमेशा से ऐसा खुदगर्ज नहीं था मैं,
समझूं ना किसी के दिल को बेदर्द नहीं था मैं,
औरों की गुस्ताखियां खुद अपने सर ली है मैंने!
• मोहब्बत का इल्जाम ही नहीं मोहब्बत की है मैंने!!
लड़खड़ाते कदम और धुंधला दिख रहा था,
समझा नहीं जा रहा था मैं जो लिख रहा था,
बेशक आदि नहीं हूं मगर एक मर्तबा पी है मैंने!
• मोहब्बत का इल्जाम ही नहीं मोहब्बत की है मैंने!!
चेहरे से नूर गयाब और मैं मरने की कगार पर था,
दुख जन्मों तक साथ निभाने के उसके करार पर था,
चंद रोज ही सही किसी के प्यार में जिंदगी जी है मैंने!
• मोहब्बत का इल्जाम ही नहीं मोहब्बत की है मैंने!!
© Dharminder Dhiman