...

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समय के साथ
समय के साथ

सब कुछ बदला बदला सा है,,
यह समय का कैसा खेल है।
जिस्मों के प्यार है आज कल,,
रुह का रुह से कहां होता मेल है।

हर रिश्ता भी है बदला बदला,,,
अब पहले जैसा प्यार नहीं।
दूर रहने वाले ग़म के साथी है,,
पास रहने वालों को दर्द की सार नहीं।

किसी और को हम क्या कहें,,
हम खुद भी तो बदल गए।
दूसरों को खुश रखते रखते,,,
खुद को खुश रखना भुल गए हैं।

साथ समय के बच्चे भी बदल जाते,,
मां बाप को अनपढ़ कहते हैं।
दो चार साल के रिश्ते खातिर,,
रिश्ता मां बाप से तोड़ देते हैं।

साथ समय के सब कुछ बदल जाता,,
हम ने तो बस इतना समझ आया है।
अपने भी अपने रहें नहीं,,
जब से कलयुग आया है।
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