कुछ गिला, शिकवा और कुछ शिकायतें
एक कमरे में रहकर के, कुछ बताते क्यों नहीं
मुझे छूकर, नजरों से, दीवार गिराते क्यों नहीं
ले चलो वहां जहां मचलती सब ख्वाहिशें मेरी
बड़े बेशर्म ख्याल हैं हकीकत बनाते क्यों नहीं
कबसे तड़प रही हैं, ये आंखें, तेरे...
मुझे छूकर, नजरों से, दीवार गिराते क्यों नहीं
ले चलो वहां जहां मचलती सब ख्वाहिशें मेरी
बड़े बेशर्म ख्याल हैं हकीकत बनाते क्यों नहीं
कबसे तड़प रही हैं, ये आंखें, तेरे...