पिता
पिता
देख दशा माटी का ऐसा, पास पड़ा कण बोल उठा,
क्यों सहते प्रहार कुम्हार का, बह जाओ इस मूसलाधार में l
देखा रहा तू प्रहार पिता का, ज़रा गौर से देखो तुम,
उस कठोर हाथों के पीछे, ले रहा आकार मैं।
तनिक संशय में आकर, कण फिर वापस बोल पड़ा,
क्यों सहते ताप सूर्य का, क्या है ऐसा इस कुम्हार में l
फिर ठठाकर माटी बोला, देख पलट कर इस निर्दय संसार को,
इसी कठोर संसार के लिए हो रहा तैयार में।
पूछ रहा तू क्या दिखता मेरे पालनहार में,
देख गौर से, अस्तित्व झूलता है मेरा इस कुम्हार में।
© रवि रॉय
देख दशा माटी का ऐसा, पास पड़ा कण बोल उठा,
क्यों सहते प्रहार कुम्हार का, बह जाओ इस मूसलाधार में l
देखा रहा तू प्रहार पिता का, ज़रा गौर से देखो तुम,
उस कठोर हाथों के पीछे, ले रहा आकार मैं।
तनिक संशय में आकर, कण फिर वापस बोल पड़ा,
क्यों सहते ताप सूर्य का, क्या है ऐसा इस कुम्हार में l
फिर ठठाकर माटी बोला, देख पलट कर इस निर्दय संसार को,
इसी कठोर संसार के लिए हो रहा तैयार में।
पूछ रहा तू क्या दिखता मेरे पालनहार में,
देख गौर से, अस्तित्व झूलता है मेरा इस कुम्हार में।
© रवि रॉय