...

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Ikhalk - e - Bayan
काविश तेरे दीद से शाम हो गई
खुल्द - ए- रगबत भी वीरान हो गई !!

एहतिजाज कब्रों की करने लगे अब लोग?
कब्रों की एहतराम भी नीलाम हो गईं?

रगवत परिंदे जाल से करने लगे जब लोग ?
समझो ताबीर- ए-सफाकत भी बदनाम हो गई !!

ज़िंदगी भी सब ओ रोज तो सहलाती है शायद
कभी कभी तो तसल्ली भी सरे आम हो गई !!