9 views
Ikhalk - e - Bayan
काविश तेरे दीद से शाम हो गई
खुल्द - ए- रगबत भी वीरान हो गई !!
एहतिजाज कब्रों की करने लगे अब लोग?
कब्रों की एहतराम भी नीलाम हो गईं?
रगवत परिंदे जाल से करने लगे जब लोग ?
समझो ताबीर- ए-सफाकत भी बदनाम हो गई !!
ज़िंदगी भी सब ओ रोज तो सहलाती है शायद
कभी कभी तो तसल्ली भी सरे आम हो गई !!
खुल्द - ए- रगबत भी वीरान हो गई !!
एहतिजाज कब्रों की करने लगे अब लोग?
कब्रों की एहतराम भी नीलाम हो गईं?
रगवत परिंदे जाल से करने लगे जब लोग ?
समझो ताबीर- ए-सफाकत भी बदनाम हो गई !!
ज़िंदगी भी सब ओ रोज तो सहलाती है शायद
कभी कभी तो तसल्ली भी सरे आम हो गई !!
Related Stories
10 Likes
3
Comments
10 Likes
3
Comments