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मेरे वजूद की कहानी
किसको सुनाऊं अपने ही हाथों अपने वजूद को मिटाने की कहानी,
कैसे खुशियों को बेचकर मैंने गम खरीदकर बर्बाद की अपनी जवानी,
गर्दिश में सितारे इस क़दर हुए की रगो से खून सूख गया आंखों से पानी,
शायद मेरे कर्मों के फल के रूप में मुझे ऐसे मुंह की पड़ी खानी,
जो सज़ा मैंने खुद को देकर झेली ऐसी ना हो मेरे दुश्मन की जिंदगानी,
यह मेरे दर्द की दास्तान सदियों नहीं बस दस बीस साल है पूरानी।
© DEV-HINDUSTANI
कैसे खुशियों को बेचकर मैंने गम खरीदकर बर्बाद की अपनी जवानी,
गर्दिश में सितारे इस क़दर हुए की रगो से खून सूख गया आंखों से पानी,
शायद मेरे कर्मों के फल के रूप में मुझे ऐसे मुंह की पड़ी खानी,
जो सज़ा मैंने खुद को देकर झेली ऐसी ना हो मेरे दुश्मन की जिंदगानी,
यह मेरे दर्द की दास्तान सदियों नहीं बस दस बीस साल है पूरानी।
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