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"ज़ख़्म"
ग़म गैरों ने दिया होता तो शायद
भूल भी जाते!!
मगर यहां तो अपने ही है जो लम्हा
दर लम्हा कदमों में शूल बिछाते!!
अश्क खुशी के होते तो हम भी शायद
खुशियां मनाते!!
मगर यहां तो अपनों ने ऐसे ग़म दिए कि
हर लम्हा अश्कों से आबशार है बहते!!
ज़ख़्म जिस्म का होता तो वक्त के साथ
भर भी जाते!!
मगर यहां तो अपनों के दिए दर्द ऐसे हैं
कि घाव भरते हीं नहीं जिस्म छलनी हुए हैं जाते!!
© Deepa🌿💙
भूल भी जाते!!
मगर यहां तो अपने ही है जो लम्हा
दर लम्हा कदमों में शूल बिछाते!!
अश्क खुशी के होते तो हम भी शायद
खुशियां मनाते!!
मगर यहां तो अपनों ने ऐसे ग़म दिए कि
हर लम्हा अश्कों से आबशार है बहते!!
ज़ख़्म जिस्म का होता तो वक्त के साथ
भर भी जाते!!
मगर यहां तो अपनों के दिए दर्द ऐसे हैं
कि घाव भरते हीं नहीं जिस्म छलनी हुए हैं जाते!!
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