...

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कुछ हो तो ऐसा हो।
"नाचीज"

गम की शाम हो तो बुलन्दी पे हो।
बेपेरवाहि परवान चढ़े।
एक नशा हो तो अदब से हो जहन मे।
मुकाम हो तो कुछ ऐसा हो।
वरना गम की शाम, तो नजाने कितने मैखाने समेट लेते है।

सिद्दत हो तो ऐसी, नज़र मे उसके सिवा कुछ और न हो गालिब।
वरना सिद्दत बेईमान होगी।

कुछ कमाए तो यू की अब किसी चीज का मोल न हो।
कोई चाह न हो।
बस घुल जाए आरज़ू।
बिखरने आ कुछ आयाम न हो।

कुछ हो तो यू की कुछ और होने का काम न हो।

गालिब ये कागजी बाते इनको सभालो तीजोरि मे वरना वक्त की वारिश समेट लेगी।

कुछ अदब से हो हकीकत तो कहो, ये कागजी बातों की कस्ती सुबह की रातो तक है।
कुछ हो पोसिदा तो कहो।

कुछ हो कुछ कर गुजरने को तो कहो।