//पनाहों में//
"शिद्दत से ग़र हो गुज़रिश तो यूँ पनाहों में आएँगे,
बेकरारी में जान-ए-जाँ ,बेशक़ निगाहों में आएँगे।
आएँगे जब भी तो दर्द-ए-दिल का हाल पूछेंगे ज़रूर,
जिस ग़म का ज़िक्र नहीं मिटाने ख़ैर-ख़्वाहों में आएँगे।
हालात-ए-हाल-ए-दिल समझने की...
बेकरारी में जान-ए-जाँ ,बेशक़ निगाहों में आएँगे।
आएँगे जब भी तो दर्द-ए-दिल का हाल पूछेंगे ज़रूर,
जिस ग़म का ज़िक्र नहीं मिटाने ख़ैर-ख़्वाहों में आएँगे।
हालात-ए-हाल-ए-दिल समझने की...