सच सच नही लगता अब, झूठ झूठ नही लगता
जाने क्या मंजर ए दौर से तबियत गुजर रहीं
अपने अपने नही लगते, पराया पराया नही लगता
जो सुर्खियों में हो उसपर बया करना भी मुश्किल हैं
सच सच नही लगता अब, झूठ झूठ नही लगता
ए फितरत बडी मशहूर हैं जमाने में आजकल
खिलाफ-ए -हुक्म कह देते हैं,
वो शख्स क्यूँ लोग-बाग नही लगता
- किर्ती मेश्राम
© 🖋️दिलं-ए-जज्बात
अपने अपने नही लगते, पराया पराया नही लगता
जो सुर्खियों में हो उसपर बया करना भी मुश्किल हैं
सच सच नही लगता अब, झूठ झूठ नही लगता
ए फितरत बडी मशहूर हैं जमाने में आजकल
खिलाफ-ए -हुक्म कह देते हैं,
वो शख्स क्यूँ लोग-बाग नही लगता
- किर्ती मेश्राम
© 🖋️दिलं-ए-जज्बात