...

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बचपन
सफलता के पीछे यूँ भागते भागते
अपनी मंजिल की दौड़ में सदा हांफते हांफते
हम अपना बचपन बहुत दूर छोड़ आए
साथ अपने बेचैनी और मायूसी जरूर मोड़ लाएं
वो बचपन की यादें,छोटी-छोटी फरियादें
वो मस्ती भरे दिन,वो मासूमी रोतें
सबको छोड़कर हम आगे बढ़ते गए
उन बचपन के अवशेषों पर खुद ही चढ़ते गए
आज जबकि हम सफलता की अनहद पर हैं
लगता है सदा कि जीवन की सरहद पर हैं
अब देखकर छोटे बच्चों को लगता है ये
जीवन के विभिन्न रंगों के साथ कितने फबते हैं वे
ईश्वर करें,ये वक़्त यहीं ठहर जाए
कोई बच्चा न घर छोड़कर,कभी शहर जाए
शहर जाकर शायद मिल जाएगा बहुतकुछ
मिलने पर भी बहुत,लूट जाएगा सबकुछ
बड़े होने पर माना बहुत पाओगे
पर वो बचपन जैसा सुकून कहां से लाओगे
शहर जाने पर गांव की याद आती रहेगी
ये चिंता,ये पीड़ा सब तुमको खाती रहेगी
सुलाने के लिए तो गांव में,मां सदा अपने पास बुलाती रही
बस उन्हें यादों के बलबूते शहर में मुझको नींद आती रही
धीरे-धीरे कमाने का जुनून उम्र के साथ जाता रहा ...