...

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पाने की आस
रोज़ सुबह आती है और अंधेरे आने से वे चली जाती है।
पर तुम अब भी खामोश हो और उसी का खौफ है।
रास्ता तो दिखता है पर मुझे जाने से डर लगता है।
बही डर बार बार आता है और बही सताता है।
बस अब आने की है तेरी आस....

बिना



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