...

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आधा सच
दरिया की रवानी सा आधा सच बताया नहीं जाता
आग हूँ झुलस जाओगे ये राज़ छुपाया नहीं जाता

उदास चेहरे को मशक्कत की धूप में सुर्ख़ रखते हैं
नहीं की आम कहानी तेरी यादों की ये ज़र्फ़ रखते हैं

रखना है दुनिया में बाक़ी कुछ तो हक़ीक़त का भरम
यूँ रहता नहीं झूट आसपास मेरे यही है रब का करम

कुछ लफ़्ज़ मेरे कलम पे ठहरते नहीं आजकल
पाबंद ए वफ़ा है ये नकल करते नहीं बिलकुल

ना जाने मेरे मिजाज का वो मौसम कैसे आयेगा
है उम्मीदों का नूर जिस तरह रौशन क्या ऐसे आयेगा
NOOR E ISHAL
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