...

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ग़ज़ल
जीने का सामान बना रक्खा है
यादों को दरबान बना रक्खा है
तिरी खुशी के कैनवास पर हमनें
दिल धड़कन और जान बना रक्खा है

उसकी बातें सुनने की ख़ातिर ही
हमने दिल को कान बना रक्खा है

सुखन कलम को ही काट रहा है अब
क्यों रब ने इन्सान बना रक्खा है

परबत बैठे सोते रहते हैं पर
कंकड़ ने पहचान बना रक्खा है
इक बच्चे ने ख़ूँ के हर कतरे पे
नक्श-ए-हिंदुस्तान बना रक्खा है

दुनिया चालाकी का पर्दा है और
पर्दे पर नुक्सान बना रक्खा है
सीधे पेड़ अक्सर कट जाते 'जर्जर'
क्यों खुद को आसान बना रक्खा है