...

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नारी...
बस एक बार मेरी कहानी का किरदार बन कर देखो,
रोज नजरों से लुटती हुई मेरी जगह अपनी जवानी रख कर देखो,
कैसे दम तोड देती है मेरे सुबह के स्वाभिमान की रंगत शाम होते होते,
एक बार अपने पुरुषार्थ के अहम पर बीच बाजार नारीत्व का दुपट्टा डाल कर देखो,
जहर से भी जहरीली है हवा में तैरती बातें,
बिना छुए ही अस्मत को है लुटती ये सबकी घूरती आंखें,
जला देती है उड़ने के सपनों को इरादों को,
है बचती बस बेबसी और लाचारी भरी तपती हुई राखें,
इन राखों को कभी अपने हकीकत से जोड़ कर देखो,
हो कहते मर्द खुद को तो कभी खुद से मुंह मोड़ कर देखो,
है ये आसान तुम्हारे लिए कहना की तुम हो अबला हो तुम कमजोर या हो तुम चीज सजावट की,
तड़पती है रूह ये कैसे,
ये तुम भी जान जाओगे,
बस एक बार अपने पुरुषार्थ के अहम पर बीच बाजार नारीत्व का दुपट्टा डाल कर देखो_!
दीपक
०८.०१.२०२४