...

9 views

गज़ल
मेरे भीतर जलता हुआ क्या है
धीरे धीरे सुलगता हुआ क्या है

सांस बन्द और नब्ज थमी हुई
फिर ये सीने में धड़कता हुआ क्या है

ऊपर छा गई गर्द लगता है
राख में दबा दहकता हुआ क्या है

शाम हुई, सूरज भी ढल गया
क्षितिज पर ये पिघलता हुआ क्या है

बादलों का नामों-निशां भी नहीं 'आकाश'
तुम्हारी आँखों से बरसता हुआ क्या है