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मेरी पहली कविता - तुझ पर लिख दूँ कोई ग़ज़ल मैं
तुझ पर लिख दूँ कोई गज़ल मैं,
ऐसी कोशिश किया करता हूँ
नज़रों में लिए तेरी सूरत,
लिखना जब भी शुरू करता हूँ
रह जाता है कोरा कागज़,
तेरे चेहरे में खो जाता हूँ
और गज़ल की अधूरी ये कोशिश,
हर रोज़ किया करता हूँ
तुझ पर लिख दूँ कोई गज़ल मैं...

तेरी आंखें हैं या कोई झीलें,
इन झीलों के बारे में लिख दूँ
है गहराइयाँ इनमें कितनी,
ये अल्फ़ाज़ों में कैसे लिख दूँ
हो जाना है इन में फ़ना अब,
इसलिए डूबा ही रहता हूँ
और गज़ल की अधूरी ये कोशिश,
हर रोज़ किया करता हूँ
तुझ पर लिख दूँ कोई गज़ल मैं...

होंठ तेरे हैं या मय के प्याले,
इस मयशाला के बारे में लिख दूँ
है नशा कितना इन प्यालों में,
बिन उतारे नशा कैसे लिख दूँ
इस नशे के ख्यालों में ही,
मैं मदहोश रहा करता हूँ
और गज़ल की अधूरी ये कोशिश,
हर रोज़ किया करता हूँ
तुझ पर लिख दूँ कोई गज़ल मैं...

ये भोली-भाली तेरी सूरत,
इस चंदा के बारे में लिख दूँ
चांदनी जो बरसती है दिल में,
दिल की बातें मैं कैसे लिख दूँ
भूल जाता हूँ मैं खुद को भी,
इसका दीदार यूँ करता हूँ
और गज़ल की अधूरी ये कोशिश,
हर रोज़ किया करता हूँ
तुझ पर लिख दूँ कोई गज़ल मैं...

तेरा कोमल कमल सा जो दिल है,
इसकी रंगत के बारे में लिख दूँ
इत्र बनकर समाई जो मन में,
ऐसी संगत के बारे में लिख दूँ
बीत जाता है सारा समय भी,
जब तुझको निहारा करता हूँ
और गज़ल की अधूरी ये कोशिश,
हर रोज़ किया करता हूँ
तुझ पर लिख दूँ कोई गज़ल मैं...

ये जो तेरी हंसी है निराली,
इस मुस्कान के बारे में लिख दूँ
थाम लेती है तेरी हंसी जो,
उस तूफान के बारे में लिख दूँ
सोचता हूँ तुझको मैं जब भी,
तन्हा होकर भी हंसा करता हूँ
और गज़ल की अधूरी ये कोशिश,
हर रोज़ किया करता हूँ
तुझ पर लिख दूँ कोई गज़ल मैं...

काश होती तू मेरी हमदम,
सोचता हूँ ये सपना मैं लिख दूँ
मान कर मैं खुदा को गवाही,
तुझको मेरा अपना मैं लिख दूँ
जी लेता हूँ जीवन इक पल में,
तेरा अहसास यूँ करता हूँ
और गज़ल की अधूरी ये कोशिश,
हर रोज़ किया करता हूँ

तुझ पर लिख दूँ कोई गज़ल मैं,
ऐसी कोशिश किया करता हूँ
नज़रों में लिए तेरी सूरत,
लिखना जब भी शुरू करता हूँ
रह जाता है कोरा कागज़,
तेरे चेहरे में खो जाता हूँ
और गज़ल की अधूरी ये कोशिश,
हर रोज़ किया करता हूँ


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