...

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एहसास मेरे
बरसों के एहसासों को समेट कर मैं तुम्हें पैगाम लिखी थी।
फिर क्या तुम्हारे हाथ लगते ही दिल टूट गया पैगाम का।

दिन तो कैसे भी गुजर जाता है इस जालिम जहां में।
पर जीने का हौसला पल में तोड़ देता है वक्त शाम का।

अब मुझे क्या पता तुम क्या पढ़ना,सुनना पसंद करते हो।
ख़ामोश हो गई हूं मैं शायरी हिस्सा नहीं है मेरे कयाम का।

कैसे उकेरूं अपने दिल के अरमानों को कोरे कागज पे।
जब मेरी इस डायरी में इक भी पन्ना नहीं है तेरे नाम का।

लौट गई है बारात मेरे दर से बिन दुल्हन को अपने साथ लिए।
लग गई नज़र मेरी शहनाई की धुन पर, तेरी झूठी कलाम का।

कांच के टुकड़ों की तरह बिखर गया मेरी जिंदगी का लम्हा लम्हा।
अब इश्क हो गया है सफेद रंग से तो लाल रंग मेरे किस काम का।।

Ruchi Arun...✍️✍️

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