...

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अगस्त पंद्रह सन् सैंतालीस
महासमर के महायज्ञ में उबल रहा उजियारा है
अगस्त पंद्रह सन् सैंतालीस मिटा रहा अंधियारा है

कटी बेड़ियां भारत मां की,
नवभारत निर्माण हुआ
अथक परिश्रम वल्लभ दल
दिश दस परिमाण हुआ
अंग्रेजों ने इस यज्ञवेदी में
कितनों के सर कुचले थे
बनकर ज्वाला होम होने को
कितने यौवन मचले थे

उड़ती राख पर भोर लिए
डूबा पश्चिम का तारा है
अगस्त पंद्रह सन् सैंतालीस
मिटा रहा अंधियारा है

हिमालय सा मस्तक अपना
हृदय गंगा सी धारा
कच्छ अरुणाचल से बाजू हैं
देख दृश्य मोहक मन हारा
आकाश सा है सामर्थ्य हमारा
फिर भी शीश झुका करे नमन
करे निजता पर प्रहार कोई बैरी
तो काल बन करे रिपु दमन

वसुदैव कुटुंबकम यही एक मंत्र हमारा है
अगस्त पंद्रह सन् सैंतालीस मिटा रहा अंधियारा है

© manish (मंज़र)