...

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मासूम
साथियों को सोते देख ,
कभी सोने का मन करता है ।
छाओ देते देते,
अब छाओ के बनने का मन करता है।

फिर मिलेंगे ,जल्दी मिलते है में बस मुख हिलता है ,
मन तो अब कुछ और ही कहता है ।
छुट्टीयो पे जाने का मन करता है,
बेफिक्र उड़ने का मन करता है ।

जिव्हा के घाव अब नासूर होते है,
भाव अब ज्यादा मेहसूस होते है,
मान भी लो हम बेकसूर होते है।

मौन में अब खौंफ होता है,
बातों का न छोर होता है ,
नापतोल के अब मोल होता है ।

फिर भी हम मासूम है
व्याहारिक कानून की नहीं पड़ी
परेशानी भले करे खड़ी
हम है धनी ।
© Vatika
#nameit