...

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//बंदगी//
"मोतियों सा पिरोया लफ़्जों को बंदगी आ गई,
तुम से मिली, सहमी साँसो को ज़िंदगी आ गई।

बेख़्याली में फक़्त ख़्याल रहा तेरा जानते हो न;
गुफ़्तगू हुई कुछ इसकदर बेपरद़गी आ गई।

तसव्वुर-ओ-शाम-ओ-सहर में जीती हूँ बस,
तुम से दबे ख़्वाहिशों को मेरे रफ़तगी आ गई।

विसाल-ए-रह-गुज़र हुए क़ायनात ने किया फिराक़,
बेक़रारी में आवाज़ को मेरे नग़्मगी आ गई।

दौर-ए-पैमाना में राज-ए-मय हुए मेरे सुनो तो,
वस्ल-ए-नशात के बेफिक़्री में ग़िरफ़्तगी आ गई।

मेरी दुआओं का सबब मिला है अहल-ए-वफ़ा,
मेरी जान, रस्म-ए-दिलदारी में आशुफ़्तगी आ गई।

हाल-ए-दिल बता और क्या ही बयाँ करे "सैयाही",
इश़्क-ए-चिंगारी में सुलगने से भी शोलगी आ गई।।"
© ©Saiyaahii🌞✒