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बिखर
#बिखर
निखर जाएगा समझौता कर ले,
बिखर जायेगा ना हठ कर बे;
शीशा कहा टिकता गिर कर रे,
संभाल नहीं पाएगा उठकर भी
बिखर गया शीशा, हठ की आग में जलकर,
समझौते की मिट्टी में मिल गया, धूल बनकर।
कभी चमकता था, प्रतिबिम्ब दिखाता सच्चा,
अब टुकड़ों में बिखरा, खो गया अपना वजूद सच्चा।

कभी हँसता था, देखकर जीवन के रंग,
अब रोता है, हर टुकड़े में दर्द का संग।
कभी छूता था, कोमल स्पर्श से हर तन,
अब चुभता है, तीखे कांटे की तरह मन।

समझौते की राह, आसान नहीं होती,
हठ का त्याग, आसानी से नहीं होता।
टूटे शीशे की तरह, बिखरना पड़ता है,
खुद को मिटाकर, फिर से खिलना पड़ता है।

मिलकर बनता है, नया रूप रंगीन,
समझौते की डोरी से, जुड़ता है जीवन का संगीन।
टूटे शीशे की कहानी, सिखाती है ये बात,
हठ का रास्ता, ले जाता है सिर्फ बर्बादी की रात।