...

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छुप छुपकर बहुत रोये हैं हम...
जाने कितने ख्वाब बसे थे इन आँखों की गहराई में
सबके सब खानाबदोश हो गए तेरी-मेरी लड़ाई में

तेरी यादों के साये में छुप छुपकर बहुत रोये हैं हम
महफ़िलें भी रास ना आती कुछ यूँ उलझे तन्हाई में

जिसकी फितरत जैसी देखी,उसकाे वैसा बोल दिया
बहुत नुकसान हुआ हमारा इस छोटी-सी सच्चाई में

समुंदर के जैसा हौसला था जिन लोगों के किरदार में
दरिया में डूबकर मर गए वो भी मोहब्बत की रुस्वाई में

© आँचल त्रिपाठी