...

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अनंत प्रश्न
लील गई अहसास,
तोड़कर हृदय का विश्वास।
करें कभी हलचल,
आज है शांत सा कौतूहल।

बसंत सा था खुमार,
अब रो दे नयन ज़ार-ज़ार।
सावन की रिमझिम,
बढ़ाये अक्सर और है गम।

थे अनूठे से कफ़स,
न तोड़ पाये गये ऐसे फंस।
अनंत प्रश्न कचोटते,
पथ किसका जाने निहारते?

करेंगे अठखेलियां,
बिछा हंसी की पंखुड़ियां।
बलि मत दे,उम्मीद,
ठहाके ,गम सब ले खरीद।
© Navneet Gill