...

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प्यार बदनाम है
प्यार अल्फाजों की बस की बात नहीं
उसकी खामोशी को मेरा सलाम है
यूं तो उम्मीद के हसने रुलाने पे भी
हर बार प्यार ही बदनाम है

मिलाया किस्मत ने, चुराया किस्मत ने
लकीरें तेरी फिर क्यों गुमनाम है?
एक दूजे के एक दूजे रह जाने में
हर बार क्यों प्यार बदनाम है?

ज़ख्म हमेशा जुल्म से मिले तो
खुशियों की वजूद क्यों बेनाम है?
दर्द दिया खुदके उम्मीदों को तो
उसमें भी क्यों प्यार बदनाम है?

पता तो है की जुड़ने का टूटना
और टूटने का जुड़ना परिणाम है
फिर किस्मत का दिल से रूठना
क्यों उसमे भी प्यार बदनाम है?

इश्क कलंक हो तो ये बताओ
नफ़रत का क्या मुकाम है?
एक ही शख्स से सौ दफा हो
वो प्यार क्यों बदनाम है?
© Sabita