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बस अब जाने भी दो
दिल पर हर चीज़ ले लेती हूँ मैं,
मुझे जाने देना नहीं आता,
यूंँ तो डिग्रीयाँ बहुत रखी हैं मेरी अलमारी में,
मुझे ज़िंदगी जीना नहीं आता।
किसे दोष दूँ अपनी इस दशा का,
के कोई दोषी है भी नहीं,
मेरी कायनात तो मैं ख़ुद हूंँ,
मुझे अपना जीवन संवारना नहीं आता।
रख लेती हूँ हर घाव दिल पर,
मुझे जाने देना नहीं आता,
उलझ जाती हूंँ वाद विवाद में,
मुझे होठों को सी कर जीना नहीं आता।
इरादा किया है आज सीखूंँगी कला जीने की,
हल्के हल्के रहने की,
बातों को जाने देने की,
बूँद बूँद ज़हर अब और पिया नहीं जाता,
सलीका जाने देने का मुझे नहीं आता।
© Haniya kaur
मुझे जाने देना नहीं आता,
यूंँ तो डिग्रीयाँ बहुत रखी हैं मेरी अलमारी में,
मुझे ज़िंदगी जीना नहीं आता।
किसे दोष दूँ अपनी इस दशा का,
के कोई दोषी है भी नहीं,
मेरी कायनात तो मैं ख़ुद हूंँ,
मुझे अपना जीवन संवारना नहीं आता।
रख लेती हूँ हर घाव दिल पर,
मुझे जाने देना नहीं आता,
उलझ जाती हूंँ वाद विवाद में,
मुझे होठों को सी कर जीना नहीं आता।
इरादा किया है आज सीखूंँगी कला जीने की,
हल्के हल्के रहने की,
बातों को जाने देने की,
बूँद बूँद ज़हर अब और पिया नहीं जाता,
सलीका जाने देने का मुझे नहीं आता।
© Haniya kaur
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