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नही माँ आज मैं न रोऊंगी
नहीं माँ आज मैं न रोऊँगी। सही कारण इसका मैं ढूँढूँगी।
इलहाबाद में जन्म लेकर, हिन्द की इंदिरा बनी वह। एक ही मेला है वहाँ कुंभ का। इंदिरा बनी मेला सारे हिन्द का।
नहीं माँ आज मैं न रोऊँगी। सही कारण इसका मैं ढूँढूँगी।।
मोतीलाल की पोती थी वह। सो भारत के कंठहार की अनमोल मोती बनी। जवाहर की पुत्री थी वह। सो विज्ञान की ज्योति बनी। जिस से जगत में भारत का नाम बुहत चमका। कमला की कन्या थी वह सो सत्सेविका बनी वह
नहीं माँ आज मैं न रोऊँगी। सही कारण इसका मैं ढूँढूँगी।।
त्रिवेणी से सीखा उसने, धैर्य, सौम्य, करुणा से चलना। हिमालय से सीखा उसने देश का सिर उठाये रखना।। देशभक्ति का पुंज बन कर, शांति क्रांति की राह पकड़ी। करोडों जन-मन की चेतना बन, स्तुत्य जीवन की ज्योति बनी।
नहीं माँ आज मैं न रोऊँगी। सही कारण इसका मैं ढूँढूँगी।।
कांतिपुंज बन शांतिदूत बनी। स्वतंत्रता प्रिय बन वीरता की मूर्ति बनी। आत्मनिर्भरि बन, आत्माभिमानिनी बनी। अवनी पर अमरत्व की मूर्ति बनी।।
समग्रता, समैक्यता, सहजीवन की, त्रिधारा से इंदिरा का अंतर गंभीर, सागर बना, जिसके तह तक जाने में अनेक असमर्थ हुए।
नहीं माँ आज मैं न रोऊँगी, सही कारण इसका मैं ढूँढूँगी।
सुधि का यह रहस्य है भ आप के अंधे सदा होते हैं जो भानवता का दीप बुझाकर, हिंस पशु बनकर जीते हैं।।
मजहब महारोप है जिस पे महात्मा गाँधी को अपना प्रास बनाया। उसी ने फिर अब भारत रत्न, इंदिरा को अपना शिकार बनाया।।
नहीं माँ आज मैं प रोऊँगी। सही कारण इसका मैं हूँहूँगी।।
अच्छा हुआ माँ, रोना क्यों इंदिरा के इतिहास के अंतिम पृष्ठ स्याही से ही लिखे होते, वे अब स्वर्णाक्षरों से लिखे जायेंगे।।
नहीं माँ आज मैं न रोऊँगी। सही कारण इसका मैं हूँढूँगी।।
नस-नस में खून भरता है मानव का प्राण। नस नस में माँ देशभक्ति भरता है यह बलिदान अंतर्दाह का आँसू पीकर आत्मनिर्भर बनती हूँ। जिस मकसद के वास्ते इंदिरा का इन्तकाल हुआ। उसी के वास्ते मैं भी अपनी जिंदगी अर्पण करती हूँ
नहीं माँ आज मैं नही रोऊँगी। सही कारण इसका मैं ढूँढूँगी।।
नाम के लिए वह इंदिरा नहीं थी माँ, सारे भारत की इंदिरा बनी रही माँ। एक इंदिरा गयी तो क्या हुआ माँ कोटि कोटि कंठों से गूँजती है वाणी उसकी।।
नहीं माँ आज मैं नहीं रोऊँगी। सही कारण इसका मैं ढूँढूँगी।।
उपाधि पाकर नौकरी की खोज में मैं न जाऊँगी माँ। देश की उपासिनी बन जाऊँगी। देश द्रोहियों का उन्मूलन करूँगी। ।
सुर, नर मिलकर सुनें मेरा प्रण। जिस प्रण में है भारत का सौभाग्य। निर्भर है, भविष्य मेरा भी इस पर। निर्भर है इंदिरा के भावों का भारत।
नहीं माँ आज मैं न रोऊँगी। सही कारण इसका मैं ढूँढूँगी।।
इंदिर गाँधी की हत्या की वाणी सुनकर सारा देश दुःखी था। कालेज की लड़की जो बी.ए. डिग्री परीक्षा पढ़ रही थी, घर आई तो देखा पूरा परिवार चंतित है। तब वह युवती इंदिरा जी की दृढ दीक्षा तथा पौरुष को याद करते हुए तथा सेवा व्रत का प्रण करती हुई अपनी माता से यों कहती है


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