...

7 views

अनकहे अनसुने
जरूरत तुम्हारी हो कभी तो कहेंगे कैसे?
तुम्हें तो पता भी नहीं के हम हैं।

जख्म का इलाज कैसे करवाएं तुमसे?
तुम्हे तो पता भी नहीं लगी कहां है।

कब तक करें तुम्हारा इंतजार?
तुम्हे तो पता भी नहीं कोई ढूंढ रहा है।

तभी तो अकेले बैठ लेते हैं कभी कभी,
कभी खुदके वजूद के होने का एहसास लिए,
कभी जख्मों पे मरहम लगाते हुए,
के तू कभी न आएगी,
कभी खुद को ये समझते हुए।

मुस्कुराहट लिटपी रहे होतोंसे, जब भी तू सामने आए,
तू देखे बस एक नजर फिर हमको,
और आगे बढ़ जाए।
© amitmsra