धज्जिया
एक तरफ उड़ रही हैं धज्जिया
भरतीय सभ्यता और संस्कारो की.
कैफे डिस्को और सदाबहार मधुशालों में
तो दूसरी ओर विकास के नाम पर
सिसक रही हमारे देश की गरीबी
और भुखमरी जिन्हे न अनाज मिल रहा न चुलहो के लिए लकड़ी मिल े
रही
भरतीय सभ्यता और संस्कारो की.
कैफे डिस्को और सदाबहार मधुशालों में
तो दूसरी ओर विकास के नाम पर
सिसक रही हमारे देश की गरीबी
और भुखमरी जिन्हे न अनाज मिल रहा न चुलहो के लिए लकड़ी मिल े
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