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" संयम "
आज के ज़माने में "संयम" किस चिड़िया का नाम है ,
"खाओ पीओ ऐश करो" ये ज़िंदगी इसी का नाम है ।
"चरित्र" आवारा हो गया और "मर्यादा" घर से भाग गई ,
"वर्जनाओं" की लकीर पीछे छूट गई "वासना" जाग गई ।
प्रेम की छाया में दैहिक आकर्षण फल फूलकर पक रहा ,
"रोज नया साथी" के आगे "जनमों का रिश्ता" थक रहा ।
न बड़ों का आदर सम्मान न बुजुर्गों की सलाह चाहिए ,
"मेरी मर्जी" का जमाना है "आजादी" बेहिसाब चाहिए ।
नग्नता, फूहड़ता अट्टहास कर रहे लाज ने मुंह छुपा लिया ,
झाड़ियों में पड़े नवजात को कुत्तों ने नोंच नोंच के खा लिया ।
वृद्धाश्रम आबाद हो रहे अनाथालयों में भीड़ बढ़ रही ,
आगे निकलने की होड़ में मौत ज़िंदगी पर चढ़ रही ।
संयम अनुशासन सदाचार अब पुराने फंडे हो गये ,
आधुनिकता की दौड़ में "नैतिक मूल्य" कहीं खो गये ।
जीवन यात्रा में "विचारों का कचरा" यहां वहां बिखरा है ,
टोका-टाकी करने वाला आज की पीढ़ी को अखरा है ।
-पवन कुमार वर्मा