...

2 views

अपनी-सी हैं
एक साँस में जैसे समा गईं मेरे अंदर ही,
यह वादियाँ कुछ अपनी-सी हैं।
ऊँचे पहाड़ यहाँ के, गहरे समंदर भी,
यह सर्दियाँ कुछ अपनी-सी हैं।

ऊँचे पहाड़ों से धीरे-धीरे बर्फ़ उतरती है,
पिघलकर सुकून से फिर यह नदी बनती है।
बहता यह पानी प्यारी आवाज़ करता है,
वातावरण को अद्भुत संगीत से भरता है।
अपनी मर्जी से ढलने बहने, पिघलने की
यह आज़ादियाँ अपनी-सी हैं।
एक साँस में जैसे समा गईं मेरे अंदर ही,
यह वादियाँ कुछ अपनी-सी हैं।

चाँदी बिखरी है हर ओर यहाँ,
सब कुछ जादुई-सा लगता है।
कुदरत मुस्कुरा उठती है रातों में,
जब झीलों में ठंडा चाँद जगता है।
सिर पर हाथ फेर रोज़ सुलाती हैं जो,
शांति की यह शहज़ादियाँ कुछ अपनी-सी हैं।
एक साँस में जैसे समा गईं मेरे अंदर ही,
यह वादियाँ कुछ अपनी-सी हैं।

~ अनिशा

#poetry #hindipoetry #nature #landscape #snow #mountain #naturepoetry
© Anisha