...

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कोशिश
हर मस्कत्त नाकामयाब रही,
जब दूरियाँ बेहिसाब रही,
अब कहने को कुछ बाकी नहीं,
दर्द इतना की दिलासा भी काफी नहीं,
मसला नही की अब साथ नहीं,
तकलूफ़्फ़ है की अब वैसे हालात नहीं,
दरमियाँ हमारे अब कुछ बचा नहीं,
लिखना था बहुत कुछ पर लिखा नहीं,
जज्बात मेरे अब खंडहर हो चले,
जब भरने को कोई एहसास नहीं।