...

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एक दरिया पल पल उमड़ता है।
न मंजिल न रास्ता मगर जा रहे चले,
ये सफर तो है बस कहने के लिए।
मर गई हैं ख्वाहिशें, जीना गए हैं भूल,
जद्दोजहद ये बस जिंदा रहने के लिए।
अभी मैं हूं यहीं ठहरा तुम्हारे पास,
तुम्हारी खामोशी का वार सहने के लिए।
तुम्हारी शिकायतें, तुम्हारे मलाला,
कहो गर कुछ बचा हो कहने के लिए।
रूठना है मामूली बात तुम्हारे लिए,
मेरे जेहन पे होता है क्या इसका असर,
तुम्हें मालूम है?
एक दरिया पल पल उमड़ता है मेरी आंखों में,
बहने के लिए।
© Prashant Dixit