...

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शब्दो से।
"राधा रमण"
शब्दो से सब टूट गया।
जो खिलना था, वो रूठ गया।
शब्दो से साफ नहीं ।
मिट्टी जैसी आश नहीं।
कुछ सिच के कुछ उगा नहीं सकता।
लब्जो से सब बता नहीं सकता।
जो बताया वो सब खाश नहीं।
उस लम्हें मे जज्बात नहीं।
कहने को अब बात नहीं।
रात अकेली सब पहेली।
चाहू भी तो, लिख नहीं सकता।
पढ़ने को जज्बात नहीं।
वेदी पर जब चढ़ ही गया।
तो समेटने के हालात नहीं।
है अँधेरा अब कुछ कमरो मे।
सब कोनो मे बर्षात नहीं।
सब मालिक का, मालिक से सब।
कहने सुनने की कोई बात नहीं।