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उड़ता-परिंदा
काश मुझे भी पंख मिल जाता,
चिड़ियों सा मैं उड़ जाता ||१||
पपीहा पिऊ-पिऊ-कर नाचा करती,
कोयलसी मधुर मैं गीत गाता ||२||
ना जंजीर हमें कोई बांध पाता,
हर मंजिल को मै छू जाता ||३||
फूलो की बागी मैं पा-जाता,
भौरों संग मै गुण-गुनाता ||४||
भोर हुई मैं सैर को जाता,
साँझ-सवेरे घर को आता ||५||
परियो संग मै वार्ता करता,
हर सपनो को साज-सजाता ||६||
सागर के मै पार-जाता,
काश मै उड़ता-परिंदा बनजाता – २ ||७||
© 2005 self created by Rajeev Sharma
चिड़ियों सा मैं उड़ जाता ||१||
पपीहा पिऊ-पिऊ-कर नाचा करती,
कोयलसी मधुर मैं गीत गाता ||२||
ना जंजीर हमें कोई बांध पाता,
हर मंजिल को मै छू जाता ||३||
फूलो की बागी मैं पा-जाता,
भौरों संग मै गुण-गुनाता ||४||
भोर हुई मैं सैर को जाता,
साँझ-सवेरे घर को आता ||५||
परियो संग मै वार्ता करता,
हर सपनो को साज-सजाता ||६||
सागर के मै पार-जाता,
काश मै उड़ता-परिंदा बनजाता – २ ||७||
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