...

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खटमल
खुदर ती हुई अधेरों में,
जागते हुए सितारों में,
भागते रहना आसान हे क्या,
झुण्ड में जीना आसान हे क्या,
जो हुआ सो हो गया,
भूल जाना आसान हे क्या,
चलती हुई खटमल।

रचना हो या संरचना हो,
विचार हो या अभिचार हो,
मिट्टी से हो या जड़ हो,
मिले या ना मिले,
खुद का हो या छीन कर हो,
अच्छा हो या बुरी हो,
खाती हुई खटमल।

याचना पे जीता हे जो,
संभल के भी गिरता हे जो,
एक खोया तो सौ पाए,
पर एक से ही जीवन लुटाए,
खून को पानी समझ कर,
आरंभ को अंत समझ कर,
लिपटते हुई खटमल।

असमान को छूना चाहता है,
वक्त से लढाना चाहता है,
पानी को रोक ना सकता है,
पर अंगारों पे चलना चाहता है,
अंधेरों में खड़ा पर उज्जला के साथ,
आग की समन्दर मे अपनो की साथ,
जलते हुई खटमल।
जलते हुई खटमल।
© Deba Rath