...

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इश्क़ ए जूनून
इश्क़ था
इश्क है ऒर
इश्क़ होगा भी ...
तुझी से था और तुझी से होगा भी ...
तो क्या हुआ अगर मंजर है दूर ,
रास्ता मुक़म्मल था
रास्ता मुक़म्मल है ऒर
रास्ता मुक़म्मल होगा भी ...
फिर एक शाम बीती इस फरमाइश मैं ,
तेरे आने की ख़्वाहिश में
ख़ुशक़िस्मत हूँ मैं
तू मेरे नसीब में था
नसीब में है ऒर
नसीब में होगा भी ....
तुझे पाने की चाहत तो नहीं ,
मगर दूरियाँ देती राहत भी नहीं ,
इस बदले हुए ज़माने मैं
तू मेरा था
तू मेरा है ऒर
मेरा होगा भी ...

© Shagun