...

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कश्मकश
कैसी कश्मकश में फसे हैं,
हसते तो है पर खुश नहीं;
जीना चाहते हैं मगर वक्त नहीं।
कहने को हम 75 साल से आजाद हैं,
फिर भी हमे आजादी नहीं।
सपने ऊँची उडान भरने के हैं,
मगर कैद है चार दिवारी में।
कैसी कश्मकश में फसे हैं,
जिन्दा होकर भी हम जिन्दा नहीं। ।
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