...

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अंजान राही
छंटेगी रात अंधेरे की अब ऊजेला दूर नहीं।
हम लड़ता गिरता राही हूं हम कोई मजबुर नहीं।।
चैन खो गया रैन खो गया खो गये सारे वादे।
विस्मृत हो गयी सारी यादें अब तारे करते बातें।
मेरा पथ अन्जान हो चाहे, मेरी मंजिल दूर नहीं
छंटेगी रात अंधेरे की अब ऊजेला दूर नहीं।।
अर्थ का खेल है इस दुनिया में अर्थहीन सारे
रिस्ते -------------------------------------------?
स्व रचित-अभिमन्यु
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