...

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आग का दरिया
तू खुशबू बिखेर गुलाबों की तरह
आ मैं पढ़ूं तुम्हें किताबों की तरह

इक अदा ही काफी है मदहोश करने को
तेरी नज़र का सरूर है शराबों की तरह

आ दो जिस्म एक जान हो जाएं हम
आ ओढ़ लूं तुम्हें लिहाफों की तरह

यूं तो रूबरू पाने की तमन्ना की थी
कभी नींद में ही आ ख़्वाबों की तरह

सफ़र का मज़ा तब था गर तेरा साथ होता
ज़िन्दगी ढो रहा हूं बस असबाबों की तरह

ये इश्क़ है या कि इक आग का दरिया है
न हो कोई ज़िन्दगी में अजाबों की तरह

© अमरीश अग्रवाल "मासूम"