...

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मिलकत बहुत हैं।।
ये साज ओ सामान की फरोख्त ना किया कर,
मेरी मुफलिसी ही सही मेरी मिल्कत बहुत हैं।।

आमद से शिरकत तो कर कभी,मेरी मड़ई विला में,
वीरान सा.. हैं खंडहर, मगर हरकत बहुत हैं।।

गली-कूचो में नुमाइश बहुत हैं, बातीलों की,
जाने रजा क्या हैं शब्ददीवानी की,खैर मेरे मशवरे और हिकायत बहुत हैं।।

मेरे अपने बददुआ देते हैं, गौर अंधेरे में...
मगर रात होती नहीं कभी ,"शायर"
मेरे अजीरे में,.. चरागों की बरकत बहुत हैं।।

डॉ एस एल परमार"शायर"
yyours fellow



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