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प्रेम और घृणा
ज़ब कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका से प्रेम करता है
अपनी जान से ज्यादा प्यार करने का दावा करता है
फिर कुछ दिनों बाद प्रेम घृणा में क्यो बदल जाता है
जान देने बाला जाने लेने की कोशिश करने लगता है
क्यो प्रेम उसे था ही नहीं सिर्फ कुछ समय का मोह और स्वार्थ था
जहाँ प्रेम हो वहाँ घृणा कभी हो ही नहीं सकती
दोनों एक दूसरे के विरोधी हैं साथ रह ही नहीं सकते
अपनी जान से ज्यादा प्यार करने का दावा करता है
फिर कुछ दिनों बाद प्रेम घृणा में क्यो बदल जाता है
जान देने बाला जाने लेने की कोशिश करने लगता है
क्यो प्रेम उसे था ही नहीं सिर्फ कुछ समय का मोह और स्वार्थ था
जहाँ प्रेम हो वहाँ घृणा कभी हो ही नहीं सकती
दोनों एक दूसरे के विरोधी हैं साथ रह ही नहीं सकते
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