...

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मैं गुलाब हूं
मैं गुलाब हूं....
थोड़ा अभिनय मैं भी कर लेता हूं।
कंटक की पीड़ा को भीतर छुपाके
बाहर से थोड़ा मुस्कुरा देता हूं।।

मैं गुलाब हूं....
थोड़ा छल मैं भी कर लेता हूं
बनकर के जल कोमल गालों पे छलक जाता हूं
धारण कर रूप गुलकंद का अधरों का रसास्वादन करता हूं।।

मैं गुलाब हूं....
छलिया भी मैं कहलाता हूं
बदल के वेश लाल – पीले
देव, दानव, मानव, पशु, पक्षी, सूरज, चंदा जो भी हो
सबके मन को मोह लेता हूं
रहकर सूल के बीच में सदा मैं खिलखिलाता हूं
अभिनय उत्कृष्ट मैं करता हूं
पीड़ा कंटक की सहकर के, सबके मन को हर्षाता हूं।
यूं ही नहीं मैं "पुष्पों का राजा गुलाब" कहलाता हूं।🌹।
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