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गज़ल
तेरी नफ़रत ये कागज़ी सी लगे,
झुकती आंखों में आशिक़ी सी लगे।
इश्क़ जब से हुआ ये आलम है,
वक्त हर वक्त बेकली सी लगे।
जब वो होता है रूबरू मुझसे,
रात काली ये चांदनी सी लगे।
दिल को देती सकून कुछ ऐसे,
तेरी उल्फ़त ये बंदगी सी लगे।
जब वो महबूब बात करता है,
कान में बजती रागिनी सी लगे।
© शैलशायरी
झुकती आंखों में आशिक़ी सी लगे।
इश्क़ जब से हुआ ये आलम है,
वक्त हर वक्त बेकली सी लगे।
जब वो होता है रूबरू मुझसे,
रात काली ये चांदनी सी लगे।
दिल को देती सकून कुछ ऐसे,
तेरी उल्फ़त ये बंदगी सी लगे।
जब वो महबूब बात करता है,
कान में बजती रागिनी सी लगे।
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