...

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भेद
खलक है विचित्र यह,
परखती है चरित्र यह।
राम पृष्ठ को पढ़ा नहीं,
रामा ! आवरण छोड़ा नही।
कल्पना के तरू से,
खग हो असामी शुरू से।
इन्हें मलाल है इस बात का,
थे नहीं हिस्सा इतिहास का।
गंगा स्नान को वे जाते हैं,
किंचित पापी हम कहलाते हैं।
जो मृग ने कहा नहीं,
तो जग ने भी सुना नहीं।
© ParwatSonal