...

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काल्पनिक
कितना कुछ बदल चुका है तुम्हारे चले जाने से
बह जाएं शायद ये नीरस आंसू तुम्हारे लौट आने से

वो जो बने फिरते थे कभी हम भी दीवाने से
ख़्वाब अपने को बिखरते देख हुए बेगाने से

फ़ुरसत ही कहाॅं थी कभी हमें इश्क जताने से
मगर एक डर सा लगने लगा था तुम्हें बताने से

रोक भी कहां पाते हम तुम्हें उसकी बाहों में जाने से
तभी तो ज़िक्र भी न किया और बन गये अनजाने से

रू-ब-रू अक्सर हुआ करते थे हम भी ज़माने से
बेवफाई ने मगर करवा ही दी पहचान मयखाने से

अब रोज़ छलकते हैं हम भी किसी पैमाने से
तुम्हें खुशी तो बेहद मिली होगी हमें तड़पाने से

कभी तो हो गुफ़्तगू दरमियां किसी बहाने से
कुछ शिक़ायत है करनी तुमसे छिपकर ज़माने से


© random_kahaniyaan