...

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पत्थर दिल
मैं कभी ज़रुरी नहीं,
ना हीं था मेरा कोई वजूद,
ये जान लिया है, मैंने तुम्हें खोकर।

तुम तो जैसे कभी थे हीं नहीं,
इतने पास में भी होकर।

तुम्हें मुबारक जिंदगी की खुशियां,
नहीं बनना मुझे, तुम्हारे रास्ते का ठोकर।

इस बेरुखी की तपिश में, मैं भले हीं मुरझा जाऊं,
पर दुआ है ये, मेरे प्यार की छांव में तू तो खिल।

मंजिलों की तलाश में यूं हीं चलते-चलते,
डर है कि दुबारा कहीं जाऊं न मिल।

इसलिए बना लिया है मैंने खुद को निकम्मा,
और इस दिल को पत्थर दिल।


© AK