दृष्टि..
वो सब देखता है...
तुम्हारा प्रेम, जो निश्छल है,
घृणा, जो भीतर की पीड़ा से उपजी है।
तुम्हारी तकलीफें, जो तुम्हें मजबूत बनाती हैं,
संयम, जो तुम्हारी आत्मा को निखारता है।
वो देखता है तुम्हारी...
तुम्हारा प्रेम, जो निश्छल है,
घृणा, जो भीतर की पीड़ा से उपजी है।
तुम्हारी तकलीफें, जो तुम्हें मजबूत बनाती हैं,
संयम, जो तुम्हारी आत्मा को निखारता है।
वो देखता है तुम्हारी...