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हताशा
हताशा महसूस हो रही है
कि बार बार मुंह की खा रही हूं
शब्दों का जाल बुनना अच्छा जानती हूं
मगर खुद को ही नहीं समझा पा रही हूं
महसूस हो रहा है घिर चुकी हूं मैं
चारो ओर बस गहरी खाई है
अंधेरा घना और घना होता जा रहा है
मुझे छोड़ चुकी मेरी परछाईं है...
© Rishali
कि बार बार मुंह की खा रही हूं
शब्दों का जाल बुनना अच्छा जानती हूं
मगर खुद को ही नहीं समझा पा रही हूं
महसूस हो रहा है घिर चुकी हूं मैं
चारो ओर बस गहरी खाई है
अंधेरा घना और घना होता जा रहा है
मुझे छोड़ चुकी मेरी परछाईं है...
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